शेखावाटी के ठिकाने पचार का इतिहास | सांवलदास जी का शेखावतों का इतिहास

Gyan Darpan
0

History of Pachar Thikana of Shekhawat. Sanwalda ji ka Shekhawat History. शेखावाटी और शेखावत वंश के प्रवर्तक और अमरसर नरेश राव शेखाजी के तीसरे वंशज राव लूणकरण जी के पुत्र सांवलदास जी हुए | सांवलदास जी के एक पुत्र रूपसिंह के रूघसिंह, माधोसिंह, प्रतापसिंह, किनकसिंह, मोतीसिंह, सबलसिंह व जयसिंह 7 पुत्र थे। मूलसिंह बडुवा कुली की बही से ज्ञात होता है कि ये सब रैनवाल में रहते थे। वि. 1751 में बडुवा नरहरदास ने रेनवाल में बैठकर वंश क्रम लिखा। रूघसिंह को भाई बंट में मंढ़ा, रामजीपुरा छोटा व देवली गांव मिले। इनके पांच पुत्र कर्णसिंह, भीमसिंह, परसराम, अजबसिंह व डूंगरसिंह थे। पचार ठिकाना दो पानों में बंटा हुआ था। बड़े पाने के वर्तमान ठाकुर प्रतापसिंह (कायमसिंह के पुत्र व माधोसिंह के पौत्र) है।

सम्भवतः भीमसिंह को वि. सं. 1759 में पचार का ठिकाना मिला। पचार ठिकाने में रामपुरा, बाज्या का बास, सूरपुरा व श्यामपुरा चार अन्य गांव भी थे। पचार सहित यह पांच गांवों का ठिकाना था। भीमसिंह के गुमानसिंह व सुन्दरसिंह दो पुत्र थे।  गुमानसिंह अपने समय के उद्भट्ट योद्धा थे। वि. 1815 में महाराजा जयपुर की ओर से इन्हें सिरोपाव देकर सम्मानित किया गया। यह वि. 1816 में शेरपुरा की लड़ाई में बहादुरी से लड़े। वि. 1824 में जयपुर के माधोसिंह व भरतपुर के जाट जवाहरमल के मध्य मांवडा के पास जबरदस्त युद्ध हुआ। गुमानसिंह ने इस युद्ध में जयपुर के पक्ष में तलवार बजाई और बड़ी वीरता से लड़े सिर कटने पर भी शत्रु को धाराशायी करते रहे। वंश भाष्कर के रचयिता सूर्य मल्ल मिश्रण लिखते हैं-

पुत्र थे।

“सांवलदास वंशी सेखावत, नाम गुमानवंदि विरद सुत । ।

सो बढ़ि नगर पचाहर स्वामी। निडर लड़यो मस्तक बिन नामी । । (Shekhawats and their Lands. p. 143)

गुमानसिंह के रामसिंह, उम्मेदसिंह, बाघसिंह, विजयसिंह व जीवणसिंह पांच पुत्र थे|

वि. 1808 में झाडली के गोपालजी का शेखावत व जयपुर के मध्य लड़ाई हुई। रामसिंह जयपुर के पक्ष में लड़े। उनके झाडली की गढ़ी में गोली लगी। महाराजा जयपुर ने आषाढ़ द्वितीय वदि 9 वि. 1808 को सिरोपाव प्रदान किया। रामसिंह की पिता की मौजूदगी में वि. 1809 में मृत्यु हो गई। महाराजा जयपुर ने उनके पुत्र पूर्णमल की आषाढ़ सुदि 4 वि. 1809 को मातमी की। पूर्णमल जी के चांदसिंह, चतरसिंह, स्योदानसिंह, चिमनसिंह, रघुनाथसिंह और हम्मीरसिंह 6 पुत्र थे। चांदसिंह के बाघसिंह, जवाहरसिंह और सम्पतसिंह तीन पुत्र हुए। बाघसिंह ठिकाने के स्वामी हुए। इनके बाद क्रमशः केशरीसिंह गोपालसिंह (दत्तक) कल्याणसिंह, गणपतसिंह (दत्तक) पचार के ठाकुर हुये। इनके पुत्र शिवनाथसिंह (वर्तमान) हैं।

सांवलदास जी के पुत्र रूपसिंह के पुत्र प्रतापसिंह ने प्रतापपुरा बसाया। इनके भाई किनकसिंह डोडया (रेनवाल के पास) व छोटे भाई मोतीसिंह, को सलेदीपुरा की जमींदारी मिली। इनकी संताने यहीं निवास कर रही हैं। रूपसिंह के पुत्र जयसिंह के पुत्र कनीराम जोगीदास, पृथ्वीदास, सुजाणसिंह, दौलतसिंह, सालिमसिंह व स्योदानसिंह 6 पुत्र थे। जोगीदास, पृथ्वीदास व सुजाणसिंह की संतान रामजीपुरा बड़ा में निवास करती हैं। रामजीपुरा के हाथीसिंह के पौत्र व रामसिंह के पुत्र धीरजसिंह को वि. 1776 में महाराजा सवाई जयसिंह जयपुर ने सिरोपाव देकर सम्मानित किया। (दस्तूर कौमवार जात सेखावत रजि. 29 रा. रा. अभि. बीकानेर) दौलतसिंह की संताने श्यामपुरा में हैं।

पृथ्वीसिंह (पृथ्वीपुरा) सांवलदास जी के पुत्र पृथ्वीसिंह अमरसर ही रहते थे। जनश्रुति है कि बादशाह इन्हे शाहजादी देना चाहता था पर धर्म परिवर्तन का भय इतना हुआ कि उन्होंने अमरसर में ही आत्महत्या करली। उस समय इनकी ठकुराणी गर्भवती थी। वह अपने पति को मिले भाईबंट के गांव होलातों में आकर रहने लगी। वहीं इनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम बनवारीदास रखा गया। बड़ा होने पर अपने पिता की स्मृति स्वरूप प्रिथीपुरा गांव आबाद किया। बनवारीदास जी के तीन पुत्र अजबसिंह चन्द्रभानसिंह व जयसिंह हुए। चन्द्रभान निस्सन्तान थे। अन्यों की संतान पृथ्वीपुरा में निवास करती है। यहां एक सती देवली है जिस पर अंकित है- संवत 1776 मीती बैसाख बदि 12 रतनसंघजी । यह रतनसिंह की चौहाण ठकुराणी थी। रतनसिंह कौन थे ? पता नहीं चल सका। यहां दो सतियां और हुई हैं। यहां के लोग मानते हैं कि एक सती माधोसिंह की ठकुराणी थी। सांवलदास के छोटे पुत्र सूरसिंह थे। इनके जोधसिंह व जोधसिंह के पुत्र रूपसिंह के गजसिंह, सवाईसिंह व सूरतसिंह तीन पुत्र हुए। इनमें सूरतसिंह के गोपालसिंह, हरनाथसिंह व प्रेमसिंह तीन पुत्र थे। हरनाथसिंह के पुत्र लालसिंह का निवास स्थान बडुवा की बही में पचार अंकित किया गया है।

रामपुरा व बधाल में भी सांवलदास जी के वंशजों की जमींदारी थी। बधाल के देवीसिंह के पौत्र व सालमसिंह के पुत्र इन्द्रसिंह को महाराजा जयपुर ने सावण सुदि 12 सं. 1814 को घोड़ा और सिरोपाव देकर सम्मानित किया। यहीं के जगरामसिंह के पुत्र गजसिंह को सं. 1814 में सिरोपाव देकर सम्मानित किया गया। निमोर की ढ़ाणी (शाहपुरा से उत्तर में 20 किलो मीटर) व हिरणा में भी सांवलदास जी के शेखावत निवास करते हैं।

सन्दर्भ : "शेखावाटी प्रदेश का राजनीतिक इतिहास" लेखक : रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी से साभार 

Page No.171 to 175

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)